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रानी पद्मावती का इतिहास चित्तौड़गढ़

By | May 26, 2021
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रानी पद्मावती के बारे में जानकारी

रानी पद्मावती चित्तौड़गढ़ की राजकुमारी और राजा रावल रतन सिंह की रानी थी। रानी पद्मावती चित्तौड़गढ़ की बेहद खूबसूरत रानी थी जिसको पाने के लिए दिल्ली के शासक अलाउद्दीन  खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया लेकिन रानी पद्मावती ने अपनी पति की मान मर्यादा चित्तौड़गढ़ की शान को बनाए रखने के लिए जौहर का रास्ता अपनाया।

रानी पद्मावती जलते हुये जौहर कुंड मे अपनी सभी दासियों के साथ कूद पड़ी। लेकिन अलाउद्दीन  खिलजी ने रानी पद्मावती को पा नहीं सका। भले ही अलाउद्दीन  खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर अधिकार कर लिया हो पर रानी पद्मावती को प्राप्त नहीं कर सका।

जब भी चित्तौड़गढ़ की बात होती है तब रानी पद्मावती और अलाउद्दीन  खिलजी और चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह की बात भी होती है कि किस तरह अलाउद्दीन  खिलजी ने चित्तौड़गढ़ को छल कपट से आक्रमण करके विजय प्राप्त की।

रानी पद्मिनी का जीवन परिचय- Rani Padmavati Ka Jivan Parichay

मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखी हुई पद्मावत नामक ग्रंथ के अनुसार रानी पद्मावती ( पद्मिनी ) का जन्म सिंहल द्वीप मे 13 वी शताब्दी मे हुआ था सिंहल द्वीप जो कि श्रीलंका मे स्थित है। रानी पद्मावती एक बेहद खूबसूरत राजकुमारी थी उनका सोंदर्य इतना तेज था कि सोना, चाँदी व हीरे कि चमक भी उनके आगे फिकी लगती थी। रानी पद्मावती की सुंदरता के इतने चर्चे थे कि दूर-दूर राज्यों के राजा भी उनसे विवाह करने के लिए आतुर थे।

रानी पद्मावती का इतिहास चित्तौड़गढ़

रानी पद्मावती के पिता का नाम गंधर्वसेन था और उनकी माता का नाम चम्पावती था। रानी पद्मावती का धर्म हिन्दू धर्म था, और क्षत्रिय (राजपूत) जाती की थी। पद्मावती का बचपन का नाम पद्मिनी था। जिन्हे बाद मे अनेक ग्रंथो मे पद्मावत कर दिया।

रानी पद्मिनी ( पद्मावती )बचपन से ही बहुत सी कलाओं मे निपुण थी, युद्ध कला का ज्ञान भी उनको बखूबी आता था। तीरंदाजी और तलवार बाजी कि कला मे भी निपुण थी। उनको शिक्षा का अच्छा ज्ञान था।

गंधर्वसेन( पद्मिनी के पिता ) को पद्मावती का किसी और से बात करना बिलकुल पसंद नहीं था इसी कारण से रानी पद्मावती का लगाव एक तोते से हो गया जिसका नाम हीरामणि था। हीरामणि और पद्मावती का घनिष्ठ संबंध को देखकर गंधर्वसेन को बिलकुल अच्छा नहीं लगा और तोते ( हीरामणि ) को पकड़ कर मारने का आदेश दे दिया, तोता जान बचाकर चित्तौड़गढ़ के शासक रावल रतन सिंह के पास पहुँच गया और तोते ने रावल रतन सिंह को रानी पद्मिनी की सुंदरता के बारे मे बताया। यही से रानी पद्मिनी और चित्तौड़ के शासक रतन सिंह की प्रेम कहानी शुरू होती है।

रानी पद्मावती का रावल रतन सिंह से विवाह

जब रतन सिंह हीरामणि नामक तोते से पद्मिनी की सुंदरता के बारे मे सुना तो रतन सिंह ने पद्मिनी को पाने का निश्चय कर लिया, पद्मिनी के साथ विवाह करने के लिए आतुर हो उठे। रतन सिंह करीब 17 हजार सैनिको के साथ पद्मिनी से विवाह के लिया समुन्द्र पार सिंहल द्वीप की और चल पड़े। 17 हजार सैनिको के साथ सिंहल द्वीप पर आक्रमण कर दिये।

इस आक्रमण के दोरान रतन सिंह को हार का सामना करना पड़ा जिसके परिणामस्वरूप रतन सिंह को बंधी बना लिया गया ग्रंथो के अनुसार गंधर्वसेन सेना ने रतन सिंह को फांसी देने का निश्चय किया। तभी वहा गायक (Royal Bard)  ने बताया की यह तो चित्तौड़ के शासक राजा रतन सिंह है यह सुनने पर गंधर्वसेन ने अपनी पुत्री पद्मिनी का विवाह रतन सिंह के साथ करने का निश्चय कर लिया।

रतन सिंह की पहली पत्नी नागमति थी व दूसरी पत्नी पद्मावती (पद्मिनी) थी। रतन सिंह पद्मिनी के साथ विवाह करने के बाद चित्तौड़गढ़ वापस लोट आए। पद्मावती की सुंदरता को देखकर पूरा चित्तौड़ झूम उठा, पूरे चित्तौड़ मे रानी पद्मिनी की सुंदरता की चर्चा होने लगी।

अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती का इतिहास

रावल रतन सिंह पद्मिनी के साथ चित्तौड़ लोटने पर पद्मिनी की सुंदरता के बारे मे इतनी चर्चा हुई कि कहा जाता है कि रानी पद्मावती इतनी सुंदर थी कि जब वो पानी पिती थी तो गले से उतरता हुआ पानी भी नजर आता था।

चित्तौड़गढ़ मे सब कुछ ठीक चल रहा था कि राघव चेतन नाम का ब्राह्मण जो रतन सिंह का सेवक और संगीत कला मे अधिक निपुण था। लेकिन राघव चेतन जो कि रावल रतन सिंह और सुंदर रानी पद्मिनी को छुपकर देखा करता था यह बात जब रावल रतन सिंह को पता चली तब रतन सिंह ने राघव चेतन को देश निकाला ( राज्य से बाहर ) कर दिया यानि बहिष्कार कर दिया।

इस अपमान का बदला लेने के लिए राघव चेतन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के पास जा पहुँचा। राघव चेतन ने जब अलाउद्दीन खिलजी को चित्तौड़गढ़ की महारानी रानी पद्मिनी या पद्मावत की सुंदरता के बारे मे बताया तो अलाउद्दीन खिलजी पद्मावत पर मोहित हो उठा, पद्मावती को पाने का निश्चय कर लिया। राघव चेतन ने अलाउद्दीन खिलजी को चित्तौड़ की सारी राजनीतिक, आर्थिक गतिविधिया से परिचित करा दिया ताकि वह रावल रतन सिंह से बदला ले सके।

पद्मावती को पाने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 मे चित्तौड़ पर चड़ाई कर दी और चित्तौड़ को चारों तरफ से घेर लिया कई दिनो के घेरे बंदी के कारण अलाउद्दीन खिलजी ने रतन सिंह को संदेश भिजवाया की वह एक बार रानी पद्मावती को देखने के बाद वह वापस दिल्ली लोट जाएगा।

रावल रतन सिंह ने अलाउद्दीन खिलजी की यह बात स्वीकार कर ली और चित्तौड़गढ़ मे अलाउद्दीन खिलजी को आने का आमंत्रण दिया। अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी को एक काँच के प्रतिबिम्ब मे देखा तब अलाउद्दीन खिलजी ने सोच लिया की रानी पद्मावती प्राप्त करके ही रहेगा।

अलाउद्दीन खिलजी की यह इच्छा पूरी करके रतन सिंह ने खिलजी को युद्ध मेदन मे छोड़ने गए तब ही अलाउद्दीन खिलजी रतन सिंह को बंदी बना लिया और दिली ले गए। रतन सिंह को आजाद करने के लिए खिलजी ने शर्त रखी रानी पद्मावती को दिल्ली लाया जाए।

राजपूत सैनीक दासियो के वेश बदल कर दिल्ली दरबार मे गए और अलाउद्दीन खिलजी को संदेश भिजवाया कि रानी पद्मिनी को ले आए रतन सिंह को छौड़ दो इसी के चलते चित्तौड़ के वीर शासक गौरा और बादल ने रतन सिंह को छुड़ाकर चित्तौड़गढ़ ले आए ।

इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मिनी को प्राप्त करने के लिए चित्तौड़गढ़ पर 1303 मे आक्रमण कर दिया और सारे राजपूत सैनीक लड़ते हुये वीरगति को प्राप्त हो गए।

रानी पद्मावती का इतिहास चित्तौड़गढ़

इसी बीच रानी पद्मावती के सामने दो पहलू रह गए कि या तो अलाउद्दीन खिलजी को आत्मसमर्पण कर दे या फिर चित्तौड़ कि मान मर्यादा बचाने के लिए अपना बलिदान दे। रानी पद्मावती ने 16000 राजपूत महिलाओं के साथ जौहर कुंड मे छलांग लगा दी जौहर का रास्ता अपना लिया। अलाउद्दीन खिलजी ने भले ही चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया हो परंतु रानी पद्मावती को प्राप्त नहीं कर सका।

रानी पद्मावती का महल

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