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चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण किसने करवाया

By | February 14, 2021
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चित्तौड़गढ़ दुर्ग कहां स्थित है – Chittorgarh Durg Kahan Sthit Hai

चित्तौड़गढ़ दुर्ग राजस्थान के इतिहास मे त्याग, वीरता, बलिदान, और स्वाभिमान का प्रतीक है अपनी संस्कृति और अपने इतिहास के कारण यह दुर्ग भारत मे एक विशिष्ट पहचान बनाए हुये है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग राजस्थान मे क्षेत्रफल की द्रष्टि से सबसे बड़ा दुर्ग है यह दुर्ग राजस्थान मे अजमेर खंडवा रेलमार्ग पर स्थित चित्तौड़गढ़ रेल्वे स्टेशन से करीब 2 मील उची पहाड़ी पर मेवाड़ राज्य का प्रसिद्ध दुर्ग बना हुआ है। यह दुर्ग चित्रकूट नामक पहाड़ी पर बनाया गया है। इसीलिए इस दुर्ग को चित्रकूट के नाम से भी जाना जाता है। यह दुर्ग मेवाड़ मे वीरों ओर बलिदान की भावनाओ का प्रतीक है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग समुन्द्र की सतह से लगभग 1850 फीट उचा है यह दुर्ग 3 मील लंबा ओर आधा मील चौड़ा है इस दुर्ग मे खेती योग्य भूमि है ओर जलाशय भी है चित्तौड़गढ़ दुर्ग मे बस्तिया ओर मंदिर है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण किसने करवाया – Chittorgarh Kile Ka Nirmaan Kisne Karvaya

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण किसने करवाया - चित्तौड़गढ़ दुर्ग हिस्ट्री

स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण किसने करवाया, चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण लगभग 8 वी शताब्दी के प्रारम्भ मे हुआ था।  यह दुर्ग मोरीवंशी राजा भीम के अधिकार मे था इस भीम का उत्तराधिकार माना हुआ, जिसे चित्रगमोरी भी कहते है इसी के नाम से यह दुर्ग चित्रकूट कहलाया बाद मे यह दुर्ग गुहिल राजवंश के अधिकार मे आ गया था।

इतिहासकारों के अनुसार यह भी बताया गया की चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण 7वीं शताब्दी में चित्रांगद मौर्य के द्वारा करवाया गया।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास – Chittorgarh Durg History In Hindi

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास बहुत प्राचीन रहा है यह दुर्ग मजबूत दीवारों से बना हुआ है सम्पूर्ण दुर्ग चारो तरफ दीवारों घीरा हुआ है इस दुर्ग की सुरक्षा के लिए मुख्य मार्ग तथा सात द्वार बने हुए है।

महाराणा कुंभा ने सुरक्षा के लिए इस दुर्ग को मजबूत प्राचीरों से युक्त बनाया, सम्पूर्ण प्राचीरों ओर द्वारो को आवश्यकतानुसार परिवर्तन करके नए तरीकों से बनवाया कीर्तिस्तभा प्रशस्थि मे रामपोल, भैरवपोल, हनुमान पोल, चामुंडा पोल, तारापोल, लक्ष्मीपोल, आदि का विस्तारित वर्णन मिलता है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर जाने के लिए मार्ग का निर्माण महाराणा कुंम्भा द्वारा करवाया गया था। प्रथम द्वार पांडनपोल के बाहर एक वर्गाकार चबूतरे पर प्रतापगढ़ के रावत बाघसिंह का स्मारक बना हुआ है जो 1534 ई मे गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण के समय दुर्ग की रक्षा करते हुए इसी पांडनपोल के पास मारा गया था।

आगे बढने पर भैरवपोल आता है जहा कल्ला ओर वीर जयमल राठौड़ की छतरिया बनी हुई है। ये दोनों वीर 1567 मे अकबर के आक्रमण के समय दुर्ग की रक्षा करते हुई वीर गति को हो गए थे।

आगे बढने पर गणेशपोल, लक्ष्मणपोल, ओर जोड़नपोल आते है इन सभी पोलो को मजबूत दीवारों से जोड़ा गया है बिना इन द्वारो को तोड़े दुर्ग मे प्रवेश करना करीब असंभव है।

आगे रामपोल से दुर्ग की समतल स्थित आरंभ होती है रामपोल के एक तरफ पत्ता सीसोदिया का स्मारक दिखाई देता है जो अकबर के आक्रमण के समय लड़ता हुआ यही मारा गया था।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दर्शनीय स्थल – Chittorgarh Durg Ke Darshaniya Sthal

चित्तौड़गढ़ दुर्ग मे तुलजा माता का मंदिर भी बना हुआ है। थोड़ा और आगे बढने पर बनवीर द्वारा निर्मित नवलख भंडार तोफखाने दालाना महासानी ओर पुरोहितों की हवेलिया भामाशाहा की हवेलिया ओर श्रंगार चवरी का मंदिर आता है मंदिर के चारों तरफ तक्षण काला का सुन्दर ढंग से प्रदर्शन किया गया है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण किसने करवाया - चित्तौड़गढ़ दुर्ग हिस्ट्री

आगे बड़ने पर त्रिपोलिया नामक द्वार आता है जहा पास मे ही कुंभा के दर्शनीय महल है। कुंभा के महलों का इतिहास बहुत प्राचीन है। इन महलों को कुंभा ने नया नाम रूप दिया इन महलो मे राजमहलों का चौक बणमाता का मंदिर ओर कुंभा के जनना तथा मर्दाना महल राजकुमार के महल ओर सभा भवन आदि बने हुए है इसके बाद मे दो बुर्ज ओर एक खुला मैदान आता है जहा पर हाथी खाना बना हुआ है।

कुंभा के दर्शनीय महलों के आगे कुम्भश्याम का मंदिर आता है जो छठी सदी का है, महाराणा कुंभा ने इसका जीर्णोंउद्दार करवाया था मंदिर के उतरंग भाग पर सुंदर नक्काशी की हुई है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण किसने करवाया - चित्तौड़गढ़ दुर्ग हिस्ट्री

मंदिर के बाहरी भाग मे मूर्तिया उत्कीर्ण की हुई है ओर इसके पास ही दो मंदिर बने हुये है इन मंदिरों मे एक तो  मीरा बाई का मंदिर आता है, दूसरा जैन मंदिर है इस जैन मंदिर मे गुजरात की तक्षण कला स्पष्ट झलकती है। इसके आगे बढने पर गौमुख कुंड ओर उसके पास त्रिभुवन नारायण का मंदिर आता है यहा मंदिर 13 वी शताब्दी की स्थापत्य कला की सुंदर झांकी प्रस्तुत करता है।

त्रिभुवन नारायण मंदिर किसने बनवाया था – Tribhuvan Narayan Mandir Kisne Banaya

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण मालवा के महाराजा भोज ने 11वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग मे बना हुआ है। इस मंदिर को त्रिभुवन नारायण का शिवालय और भोज मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।  इस मंदिर के पास नौ मंज़िला का विशाल कीर्तिस्तंभ है।

अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण क्यों किया था – Alauddin Khilji Ne Chittor Par Aakraman Kyon Kiya

अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण राजस्थान इतिहास मे एक महत्वपूर्ण कड़ी है। अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर 1303 ई मे हमला किया था और दुर्ग को जीत लिया था। अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण का कारण रानी पद्मावती की सुंदरता थी।

रानी पद्मावती चित्तौड़गढ़ के शासक रतन सिंह की पत्नी थी जो बहुत सुन्दर थी अलाउद्दीन खिलजी ने इसी सुंदरता को पाने के लिए चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर 1303 मे आक्रमण करके जीत लिया।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग की स्थापत्य – Chittorgarh Durg Ki Sthapaty

चित्तौड़गढ़ दुर्ग मे जयमल राठोड की हवेली बनी हुई है जिसमे बने हुए कमरे बरामदे आते है, जो हिन्दू स्थापत्य कला के श्रेष्ठ उदाहरण है लेकिन सीधे व साधे स्तम्भ तथा सपाट छतों मे मुस्लिम शैली दिखाई देती है हवेली के आगे रानी पद्मिनी का महल ओर कालिका मंदिर आता है जो पहले सूर्य मंदिर था यहा से दुर्ग के एक छोर पर पहुँच जाते थे जहा से वापस मुड़कर दाहिनी ओर रास्ते पर आगे बड़ने पर एक जैन विजय स्तम्भ आता है।

इस विजय स्तम्भ की तक्षण कला गुजरात की जैन तक्षण कला के समान दिखाई देती है इस मार्ग पर अदभूतजी लक्ष्मी जी का मंदिर नीलकंट का मंदिर अन्नपूर्णा ओर लक्ष्मी का  मंदिर कुकड़ेश्वर मंदिर ओर कुंड रतन सिंह के महल आदि दर्शनीय स्थल है इन महलो ओर मंदिरो मे पश्चिमी भारतीय स्थापत्य शैली दिखाई देती है जो मुस्लिम स्थापत्य शैली से प्रभावित थी।

इस प्रकार यह चित्तौड़गढ़ दुर्ग अपने आप मे एक पूर्ण इकाई है 1303 ई के पहले सभी लोग किले के भीतर रहते थे परंतु किले पर मुसलमानो का अधिकार हो जाने के बाद लोगो ने किले की तलहटी मे बसना शुरू कर दिया था इसे राजस्थान का दक्षिणी पूर्वी द्वार भी कहा जाता है।

यह दुर्ग मालवा ओर गुजरात के मार्ग मे पड़ता था इसलिए इसका सामरिक महत्व भी अधिक था यहा के खंडर राजपूत वीरांगनाओ के जौहर की धधकती हुई ज्वाला के साक्षी है ओर चित्तौड़ दुर्ग की रेणुका भारतीयो के तीर्थ स्थल की मिट्टी से भी अधिक पवित्र है। अपनी एतिहासिक परम्पराओ के कारण राजस्थान मे ही नहीं समस्त भारत मे यहा दुर्ग एक अपना अलग स्थान रखता है।

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