Ranthambore Durg History In Hindi : रणथंबोर दुर्ग का इतिहास बहुत प्राचीन रहा है रणथम्भौर दुर्ग का प्राचीन नाम या वास्तविक नाम रणस्तम्भपुर है। रणथंबोर दुर्ग के इस दुर्ग के बारे मे अबुल फजल ने कहा है कि अन्य सब दुर्ग नंगे है जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है रणथंबोर दुर्ग राजस्थान के उन पाँच दुर्गो मे गिना जाता है जिन्हे यूनेस्कों की विश्व धरोहर सूचि में शामिल किया गया हैं।
राजस्थान के प्राचीन ऐतिहासिक दुर्गो मे रणथम्भौर दुर्ग भी सर्वाधिक प्रसिद्ध है। राजस्थान का यह दुर्ग चौहान शाही परिवार से संबंध रखता है रणथंबोर दुर्ग बड़ी-बड़ी दीवारों से घिरा हुआ है। इस दुर्ग को सामरिक द्रष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है।
रणथंबोर दुर्ग राजस्थान का एक मात्र ऐसा दुर्ग है जिसमे मंदिर ,मस्जिद, और गिरजाघर स्थित है।
रणथंबोर दुर्ग कहां स्थित है – Ranthambore Ka Durg Kahan Sthit Hai
रणथंबोर दुर्ग दिल्ली बंबोई रेल मार्ग पर स्थित सवाईमाधोपुर जंक्शन से लगभग 13 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रंखलाओ से घिरा हुआ एक पहाड़ी पर स्थित है।
यह दुर्ग उचि पहाड़ी के पठार पर निर्मित किया गया है लेकिन प्रकृति ने इसे अपनी गोद मे इस तरह भर लिया कि दुर्ग के दर्शन मुख्य द्वार पर पहुचने पर ही हो सकता है।
रणथंभोर दुर्ग का निर्माण किसने करवाया – Ranthambore Durg Ka Nirman Kisne Karvaya
रणथंबोर दुर्ग के निर्माता ओर निर्माण तिथि के बारे मे इतिहासकारों मे मतभेद है इस दुर्ग का निर्माण 944 ई मे चौहान राजा रणथान देव ने करवाया था ओर उसी के नामानुसार इसका नाम रनथंभपुर रखा गया जो कालांतर मे रणथंबोर हो गया एक किंवदंती के अनुसार यह दुर्ग चंदेल राव जेता ने बनवाया था। स्पष्ट कहा नहीं जा सकता कि इस दुर्ग का निर्माण किसने करवाया यह एक रहस्य बना हुआ है जो आज भी स्पष्ट नहीं हो सका।
इतिहासकारों की मान्यता है कि 8 वी सताब्दी के लगभग महेश्वर के शासक रांतिदेव ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया था रंतिदेव संभवत चौहान शासक था क्योकि यह तथ्य तो निर्विवाद है कि चौहनों ने इस प्रदेश पर करीब 600 वर्षों तक शासन किया था चाहे जो भी इसका निर्माता रहा हो किंवदंतियो एवं एतिहासिक आधारो पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि 10 वी सताब्दी तक यह दुर्ग अस्तित्व मे आ गया था ओर 12 वी सताब्दी तक यह दुर्ग इतना प्रसिद हो गया कि उस समय के लगभग सभी एतिहासिक ग्रन्थों मे इस दुर्ग की भौगोलिक ओर सामरिक स्थिति का उल्लेख मिलता है।
रणथंबोर दुर्ग का इतिहास – Ranthambore Durg Ka Itihaas
किस दुर्ग का प्रवेश द्वार” नौलखा दरवाजा के नाम से जाना जाता है।
रणथंबोर दुर्ग का प्रवेश द्वार नौलखा दरवाजा कहलाता है जो बेहद मजबूत दिखाई देता है। इस द्वार के दरवाजो पर एक लेख खुदा हुआ है इस लेख के अनुसार इस दरवाजे का जिर्णौद्धार जयपुर के महाराजा जगत सिंह ने करवाया था।
इस प्रवेश द्वार से अंदर प्रेवेश करने पर सात मील की परिधि मे बना हुआ किले का भू-भाग दिखाई देता है जिसमे कई मंदिर महल जलाशया छतरिया मस्जिदे दरगाह ओर हवेलिया बनी हुई है। रणथंबोर दुर्ग राजस्थान का एक मात्र ऐसा दुर्ग है जिसके अंदर छतरिया, मस्जिदे, दरगाह बनी हुई है।
नौलखा दरवाजे से प्रवेश कर आगे चलाने पर एक त्रिकोणी है इस त्रिकोणी को तीन दरवाजों का समूह भी कहते है जिसे चौहानवंशी शासकों के काल मे तोरण द्वार मुस्लिम शासको के काल मे अंधेरी दरवाजा ओर जयपुर के शासकों द्वारा त्रिपोलिया दरवाजा कहा जाता है।
इस दरवजे के ऊपर साधारण भवन बने हुये है जो सैनिकों ओर सुरक्षाकर्मीओ के निवास हेतु प्रयोग मे लाये जाते है इस स्थान से भी चौकियो ओर घाटियो की निगरानी रखी जाती है इस स्थान से थोड़ी दूर आगे चलने पर हमे 32 विशाल खंभे वाली 50 फीट उची छतरी दिखाई देती है।
छतरी चौहान राजा हम्मीर ने अपने पिता की मृत्यु के बाद उसी समाधि पर बनवाई थी इस छतरी के गुंबद पर सुदर नक्काशी की गई है इस गुम्बद पर कुछ आकृतिया भी उत्कीर्ण दिखाई देती है।
गर्भगृह मे काले भूरे रंग के पत्थर से निर्मित एक शिवलिंग है इस छतरी के पास ही लाल पत्थर ही अधूरी छतरी के अवशेष दिखाई देते है।
दुर्ग के मध्य मे राजमहल भग्नावशेष दिखाई देते है यह राजमहल सात खंडो मे निर्मित है जिनमे तीन खंड ऊपर ओर चार खंड नीचे बने हुये है यह राजमहल जीर्ण शीर्ण हो चुका है फिर भी इसके विशाल खंभे सुरंगनुमा गलियारे भैरव मंदिर रसद कक्ष शस्त्रागार आदि उस युग की स्थापत्य कला के नमूने है इस महल के पिछवाड़े मे एक उध्यान है जिसमे एक सरोवर भी है इस उध्यान से एक मस्जिद के खण्डहर दिखाई देते है जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने दुर्ग पर अधिकार करने के बाद बनवाया था।
राजमहलों के आगे चौहान वंशी शासको द्वारा निर्मित गणेश मंदिर है इस गणेश मंदिर की आज भी बड़ी प्रतिष्ठा है इस मंदिर के पूर्व की ओर एक अज्ञात जल स्त्रोत का भण्डार है इस कुंड मे वर्ष प्रयत्न स्वच्छा शीतल जल रहता है इस जल स्त्रोत से थोड़ी दूर विशाल कमरों वाली इमारत है ये इमरते एक खाद्य सामग्री के गोधम थे गणेश मंदिर के पीछे शिव मंदरी भी है।
कहावत के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी को परास्त करके विजयी हम्मीर ने जब अपनी रानियों जौहर की घटना सुनी तब वे बड़े दुखी हुये ओर उन्होने अपने अराध्ये देव शिव को अपना सिर काटकर अर्पित कर दिया इस शिव मंदिर के पास सामंतों की हवेलिया तथा बादल महल है बादल महल जाली झरोखों अलंकृत है बादल महल से करीब एक किलोमीटर दूर एक ओर विशाल इमारत है जिसे हम्मीर कचहरी भी कहते है।
चौहान शासक इस कचहरी मे बेठकर प्रजा को न्याय प्रदान करते थे बड़े बड़े खंभो बरामदो कक्षो से बनी कचहरी की विशाल इमारत अत्यंत आकर्षक प्रतीत होता है यहा से भी थोड़ी दूरी पर दिल्ली दिशा की ओर देखता हुआ एक दरवाजा है जिसे दिल्ली दरवाजा कहते है।
दुर्ग के प्रवेश द्वार के बाई ओर जोगी महल है कहा जाता है की यहा एक ऋषि रहता था राजा ने उस ऋषि के रहने के लिए इस भवन का निर्माण करवाया था किन्तु कालांतर मे यहा साधुओं के डेरे लगने लग गए इसलिए इसका नाम जोगी महल पड गया।
रणथंबोर दुर्ग पर आक्रमण – Ranthambore Durg Par Akraman
रणथंबोर दुर्ग पर आक्रमण लंबे समय तक हुये इस दुर्ग पर आक्रमण की शुरुआत दिल्ली के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक से हुई थी और मुगल बादशाह अकबर तक चलती रही। इस दुर्ग की प्रभुसत्ता के लिए 1209 मे मुहम्मद गौरी व चौहानो के मध्य युद्ध लड़ा गया था। इसके बाद मे 1226 में इल्तुतमीश ने इस दुर्ग के लिए लड़ाई लड़ी, इसके बाद 1236 में रजिया सुल्तान ने, 1248-58 में बलबन ने इस दुर्ग को पाने के लिए युद्ध किए।
1290-1292 मे अलाऊद्दीन खिलजी के पिता जलालुद्दीन खिलजी ने युद्ध किये। 1301 मे अलाऊद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग पर आक्रमण किया।
और अंत मे 1569 में इस दुर्ग पर दिल्ली के बादशाह अकबर ने आक्रमण कर आमेर के राजाओं के माध्यम से तत्कालीन शासक राव सुरजन हाड़ा से सन्धि कर ली।
रणथंभोर दुर्ग के अन्य नाम – Ranthambore Durg Ke Any Naam
राजस्थान के इस दुर्ग को एक ही नहीं बल्कि अनेक नामो से पुकारा जाता है। इस दुर्ग को दुर्गाधीराज के नाम से भी जाना जाता है लेकिन रणथंबोर दुर्ग का वास्तविक नाम है रणतपुर।
रणथंबोर दुर्ग की कुंजी किसे कहते हैं – Ranthambore durg Ki Kunji Kile Kahte Hai
रणथंबोर दुर्ग की कुंजी झाँई दुर्ग को कहते है ।