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Meera Bai History In Hindi Pdf – मीरा का जीवन परिचय इन हिंदी

By | March 4, 2021
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मीरा बाई का जन्म कब हुआ था – Meera Bai Ka Janm Kab Hua

Meera Bai History In Hindi : राजस्थान का भक्तिकालीन इतिहास बहुत प्राचीन रहा है भक्ति कालीन कवीओ मे मीरा का भी एक विशेष स्थान है जिस समय राजस्थान मे जंभौजी दादू आदि संत धार्मिक ओर समाज सुधार के लिए प्रयास कर रहे थे उसी समय राजस्थान मे भक्ति रस की धारा बहाने वालों मे मीरा भी स्थान सर्वोपरि है।

मीरा बाई के जन्म के बारे मे कोई पुख्ता एतिहासिक स्रोत नहीं है। मीरा का प्रामाणिक तथा क्रमबद्ध जीवन उपलब्ध नहीं है। मीरा बाई का जन्म डा0 गोपीनाथ के अनुसार 1498-99 ई मे माना है। पाइमरम के अनुसार मीरा का जन्म 1498 ई मे हुआ था।

Meera Bai History In Hindi Pdf- मीरा का जीवन परिचय इन हिंदी

मीरा का जन्म कहां हुआ था -Meera Ka Janm Kahan Hua

मीरा बाई का जन्म राजस्थान मे मेड़ता से करीब 21 मिल दूर कुड़की नामक ग्राम मे हुआ था मीरा अपने पिता रत्नसिंह की एक लौती पुत्री थी।

मीरा बाई का इतिहास – Meera Bai Ka Itihaas

Meera Bai History : मीरा केवल 2 वर्ष की थी तब उसकी माता का देहान्त हो गया ओर मीरा अपने दादा राव दुदा के पास रहने लगी राव दुदा एक कृष्ण भक्त थे मीरा के पिता रत्नसिंह चाचा ओर वीरमदेव ओर उसकी दादी सभी वैष्णव धर्म के उपासक थे।

मीरा बचपन से ही वैष्णव धर्म के वातावरण मे बड़ी हुई मीरा मे कृष्ण भक्ति की भावना उसकी दादी की वजह से उत्त्पन हुई जब एक बार बरात को देखकर मीरा ने अपनी दादी से पूछा था की यह बारात किसकी है तो दादी ने उत्तर दिया यहा दूल्हे की बरात है।

मीरा ने वापस प्रश्न किया की उसका दूल्हा कहा है तो दादी ने कहा की उसका दूल्हा तो गिरधर गोपाल है तभी से कहा जाता है मीरा ने गिरधर गोपाल को प्राप्त करने के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया राव दुदा जो उसके दादाजी थे उन्होने पंडित गजाधर को मीरा को शिक्षा देने के लिए नियुक्त किया पंडित जी मीरा को अलग अलग कथा पुराण आदि सुनाये करते थे ओर मीरा थोड़े समय बाद पूर्ण विदुषी एवं पंडित बन गई।

मीरा के जीवन मे अनेक प्रकार की कठिनाई भरी थी ओर मीरा ने इन कठिनाइयों का सामना कृष्ण की भक्ति मे लिन रहकर किया।

1516 ई. मे मीरा का विवाह मेवाड़ के महारणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ कर दिया गया विवाह के सात वर्ष बाद ही भोजराज की मृत्यु हो गई मीरा को इससे भारी दुख हुआ ओर सदमा लगा, ओर मीरा का मन संसार से उचट गया। मीरा अपना अधिकांश समय सत्संग ओर भजन कीर्तनों मे बिताने लगी।

मीरा के पिता रत्नसिंह भी बाबर से लड़ते हुए खानवा के युद्ध मे मारे गए 1528 मे महारणा सांगा भी चल बसे मीरा के दादा की मृत्यु 1515 के पहले हो चुकी थी इसके अलावा मालदेव ने मेड़ता पर अपना अधिकार कर लिया इस परेशानियों के कारण ओर एसी स्थिति मे मीरा को मेड़ता भी छोड़ना पड़ा ओर मीरा को वापस मेवाड़ आना पड़ा।

जब मीरा मेवाड़ आई तो उस समय मेवाड़ मे राजगद्दी के लिए राजपरिवार मे गृह कलेस हो रहा था। राणा सांगा के बाद पहले रतनसिंह ओर बाद मे विक्रमादित्या मेवाड़ के शासक हुए ओर मीरा स्वतंत्र विचारो की थी ओर इन्ही स्वतंत्र विचारो के कारण राणा उससे नाराज थे।

मीरा सादुओं की संगति मे बैठना ओर कृष्ण की मूर्ति के आगे नाचना आदि राणा को पसंद नहीं आया ओर राणा ने इसे अपने राजपरिवार की मर्यादों के विरुद माना।

ऐसा भी कहा जाता है कि राणा ने मीरा की जीवन लीला समाप्त करने के लिए उसे विष का प्याला ओर सर्प भेजा गया लेकिन कृष्ण की कृपा से मीरा का कुछ भी नहीं बिगडा ओर मीरा को अनेक यातनाए दी ओर मीरा ने उन सभी कष्टों को प्रसन्नपूर्वक सहन किया मीरा ने सब कुछ कृष्ण की भक्ति मे समर्पित कर दिया ओर राजपरिवार की परम्पराओ की परवाह नहीं की।

मीरा का कृष्ण प्रेम

मीरा बाई मे भगवान कृष्ण के प्रति अटूट आस्था ओर अटूट विश्वास था मीरा बाई ने अटूट प्रेम के साथ स्वयम को भगवान कृष्ण के चरणों मे समर्पित कर दिया वह रात दिन भगवान कृष्ण के चरणों मे बेठी रहती ओर कृष्ण के भजन गाती रहती थी।

कुछ समय बाद मीरा मेड़ता को छोड़कर वृन्दावन चली गई ओर वह मीरा भगवान कृष्ण की भक्ति मे लिन हो गई।

कहा जाता है की एक दिन मीरा वृन्दावन के उच्चकोटी के संत रूप गोस्वामी से मिलने गई परंतु उन्होने मीरा से मिलने से इंकार कर दिया ओर कहा की वे स्त्रियो से भेट नहीं करते है इसके उत्तर मे मीरा ने कहला भेजा की क्या वृन्दावन मे पुरुष ही निवास करते है यदि वृन्दावन मे कोई पुरुष है तो वे है श्री कृष्ण है।

Meera Bai History In Hindi Pdf- मीरा का जीवन परिचय इन हिंदी

रूप गोस्वामी इस उत्तर को सुनकर मीरा से भेट करने को सहमत हो गए कुछ समय बाद मीरा द्वारिका चली गई वही रणछोरजी के मंदिर मे भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति के सामने भजन कीर्तन करते हुये मीरा ने अपना शेष जीवन व्यतीत किया द्वारिका मे रहते हुये मीरा की मृत्यु हो गई

मीरा बाई की रचना – Meera Bai Ki Rachnaye

 (1) गीत गोविंद का टीका (2) नरसी जी का मायरा (3) राग सोरठ का पद (4) मलार राग (5) राग गोविंद, सत्य भामा नु रूसण (6) मीरा की गरीबी (7) रुक्मणी मंगल (8) नरसी मेहता की हुंडी (9) चरित (10) स्फुट पद इनमे से केवल स्फुट पद ही मीरा की प्रामाणिक रचना मानी जाती है मीरा के स्फुट पद आजकल मीराबाई की पदावली के नाम से प्रकाशित रूप मे उपलब्ध हे मीरा की भाषा बोलचाल की राजस्थानी भाषा हे जिस पर ब्रज भाषा, गुजराती और खड़ी बोली का रंग चढा हुआ हे।

Meera Bai Ki Story : मीराबाई की भक्ति – भावना – मीरा की कृष्ण भक्ति मे अटूट आस्था थी उसकी कृष्ण भक्ति तीन सोपनों से होकर गुजरती हे पहला सोपान प्रारंभ मे उसका कृष्ण के लिए लालायित रहने का हे इस अवस्था मे वह व्याग्रता से गा उठी हे।

मैं विरहनी बैठी जागू, जग सोवि री आली वह कह उठती हे दरस बिन दूखण लागे नैन दूसरा सोपान वह हे जब उसे कृष्ण भक्ति से उपलब्धिया की प्राप्ति हो जाती हे और वह कहती हे पायोजी मैंने राम रतन धन पायो तीसरा सोपान वह हे जब उसे आत्मबोध हो जाता हे जो सायुक्त भक्ति के चरम सीढ़ी हे वह अपनी भक्ति मे सरल भाव से ओत प्रोत होकर कहती हे म्यारे तो गिरधर गौपाल दूसरो न कोई  मीरा अपने प्रियतम कृष्ण से मिलकर उनके साथ एकाकार हो जाती हे।

मीरा की उपासना माधुर्य भाव की थी अर्थात वह अपने देव श्रीकृष्ण की भावना प्रियतम या पति के रूप मे करती थी कृष्ण को ही वह परमात्मा और अविनाशी मानती थी उसकी भक्ति की विशेषता यह थी उसमे ज्ञान पर उतना बल नहीं था जितना भावना पर था मीरा के पद अपनी तीव्र प्रेमानुभूति के कारण जनसाधारण मे अत्यंत लोकप्रिय बनते चले गए मीरा सगुण भक्ति की उपासिका थी ओर श्री कृष्ण उनके आराध्यदेव थे।

मीराबाई की मृत्यु कब हुई थी – Meera Bai Ki Mrityu Kab Hui

मीरा बाई कि मृत्यु के बारे मे कही भी या फिर इतिहास पुख्ता प्रमाण नहीं है मीरा बाई कि मृत्यु के बारे मे प्रत्येक इतिहासकार अपना अलग-अलग मत प्रदान करते है। मीरा बाई कि मृत्यु का एक रहस्य बना हुआ है कि उनकी मृत्यु केसे हुई।

इतिहासकारों के अनुसार मीरा बाई कि मृत्यु 1546 मे हुई थी लेकिन कुछ के अनुसार 1548 मे हुई थी। मीरा बाई कि मीरा कि मृत्यु के सम्भ्न्ध मे कहा जाता है कि उनकी मृत्यु नहीं हुई थी वह कृष्ण कि मूर्ति मे समा गई थी।

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