देलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू राजस्थान
दिलवाड़ा का जैन मंदिर कहां है – Dilwara Ka Jain Mandir Kahan Hai
Dilwara Jain Mandir History In Hindi : दिलवाड़ा का मंदिर राजस्थान मे महत्वपूर्ण स्थान रखता है यह मंदिर माउंट आबू के बस अड्डे से करीब 2 मील दूरी पर दिलवाड़ा के मंदिर स्थित है इन मंदिरो के समूह मे 5 मंदिर है जिसमे 2 मंदिर स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है।
इन दो मंदिरो मे प्रथम मंदिर गुजरात के सोलंकी राजा भीमदेव के मंत्री विमलशाह ने आबू के तत्कालीन परमार राजा धंधुक से लेकर 1031 ई मे बनवाया था इस मंदिर मे महत्व पूर्ण मूर्ति या सीधे कहे तो मुख्य मूर्ति आदिनाथ की है जो जैनियों के प्रथम तीर्थकर माने जाते है।
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दूसरा मंदिर जिसे लुनवशाही भी कहा जाता है जैनियो के 22 वे तीर्थकर नेमिनाथ थे इस मंदिर का निर्माण वास्तुपाल ओर तेजपाल नामक दो भाइयो ने 1230 मे करवाया था इन मंदिरो मे बने हुये गर्भगृह सभामंडप स्तम्भ देवकुलिका हस्तिशाला आदि शिल्प सिद्धांत के अनुकूल बने हुये है इन सताब्दी मे अधिकांश मंदिर भुवनेश्वर प्रणाली के बनते थे तथा दिलवाड़ा के ये मंदिर भी उसी प्रणाली के प्रतीक है।
Dilwara Jain Mandir History In Hindi
प्रथम आदिनाथ का मंदिर 180 फीट लंबे व 100 फीट चौड़े चौक के बीच मे स्थित है अंदर की तरफ किनारे किनारे कोठरिया बनी हुई है प्रत्येक कोठरी मे प्रवेश द्वार के सामने उची वेदी पर 24 तीर्थकर मे से एक की प्रतिमा स्थित है दो दो खंबों के बीच मे स्तंभो के अनुरूप टिकी हुई मेहराबों से प्रत्येक कोठरी के लिए अलग अलग डयोढि सी बन जाती है ओर चार चार खंभो के बीच प्रत्येक विभाग पर मेहरबदार तथा चपटी छतों के कारण ये ओर भी स्पष्ट दिखाई देती है।
दिलवाड़ा मंदिर के बारे मे जानकारी – Dilwara Jain Mandir History In Hindi
सम्पूर्ण मंदिर श्वेत संगमरमर का बना हुआ है यह मंदिर बाहर से बिलकुल सादा दिखाई देता है लेकिन भीतर भाग मे खंभे छतें मंडप आदि की बारीक कला सर्वश्रेष्ठ है ओर सम्पूर्ण मंदिर की अनुरूपता यह प्रमाणित करती है इसकी निर्माण योजना एक ही व्यक्ति के मस्तिष्क की उपज है।
वेदिया सादे ढंग से बनाई गई है लेकीन खंभो व छतों पर किए गए तक्षण से तो एसा प्रतीत होता है की यह संगमरमर पत्थर की न होकर सफ़ेद कागज की हो जिसे शिल्पाकर ने अपनी छेनी से नहीं बल्कि कैची से बनाया गया हो ओर काटकर डिजाइन तैयार किया गया हो।
मंदिर के सभामंडप पर एक अर्द्धवर्ताकार छतरी है जो आठ चतुष्कोणीय खंभो पर टिकी हुई है खंभो का प्रत्येक युग्म एक तोरण द्वार से संबद्ध है जिसका शिल्प शौष्ठव देखते ही बनाता है खंभो के बीच की जगहो पर चाही हुई गुंबददार छतें किसी भी दर्शक का ध्यान आकर्षित किए बिना नहीं रहती इन मंदिरो की भीतरी सतह पर रामायण ओर महाभारत आदि महाकाव्यों मे से अनेक कथाए उत्कीर्ण है।
आदिनाथ के मंदिर के दाहिनी ओर चौक के एक कोने मे उचे कक्ष मे भवानी की मूर्ति प्रतिष्ठित है इसके पास ही के कक्ष मे 22 वे तीर्थकर नेमनाथ की विशाल मूर्ति है जो एक ही संगमरमर के पत्थर से बनी हुई है इस चौक के पास ही चौकोर कक्ष मे मंदिर के निर्माता विमलशाह की विशाल आश्वारुढ मूर्ति है उसके पीछे एक बच्चा बेठा हुआ है जिसे विमलशाह का भतीजा कहा गया है मूर्ति के ऊपर लगा हुआ छत्र वैभव का प्रतीक है।
विमलशाह की मूर्ति के चारों ओर दस गजरोही मूर्तिया भी संगमरमर की बनी हुई है मंदिर के दरवाजे पर स्थित हाथीखाना है जिसने न तो संगमरमर का प्रयोग हुआ ओर न ही कुराई का काम हुआ है लेकिन यह इतना उचा भवन है की इसमे एक हाथी मय सवार के सीधा प्रवेश कर सकता विमलशाह की मूर्ति ओर हाथीखाना संभवत बाद मे बनाए गए है वास्तुपाल व तेजपाल द्वारा निर्मित नेमिनाथ के मंदिर का नक्शा ओर बनावट पूर्व वर्णित मंदिर के समान ही है लेकिन कुल मिलकर यह उससे अधिक कलात्मक है।
इसके वैभव मे भी सादगी है बीच की गुमद ओर उसके आस पास की छतरियों की जो कुराई का काम हुआ है उसकी सुन्दरता शब्दो मे व्येक्त नहीं की जा सकती आकार मे लंबे बेलन के समान है ओर जहा छत से ये लटकते है वह अर्धविकसित कमल के समान दिखाई देते है जिनके पलवों की गहराई इतनी बारीक श्वेत तथा शुद्ध रूप मे दिखाई गई है कि देखते हुये आखे वही रुक जाती है ओर एक अन्य विभाग मे फूलो व पत्तिया व पक्षियो से युक्त मलाए बनी हुई है ओर इसी मे कुछ योद्धाओ कि आकृतीय बनी हुई है आगे एक दालान बना हुआ है जिसके खंभो कि नक्काशी व पच्चीकारी मनमोहक है।
छेनी का कम इतना सफाई से किया गया है कि यह सब मोम मे ढला हुआ सा प्रतीत होता है निज मंदिर मे नेमिनाथ मे मूर्ति है ओर मूर्ति के चारों ओर चौक बना हुआ है जिनकी छतों मे भी कुराई का काम किया गया है।
नेमिनाथ के मंदिर के कुछ दूरी पर भीमाशाह का मंदिर है जिसमे स्थापित धातु निर्मित आदिनाथ कि मूर्ति का वजन 108 मन बताया गया है इसके अतिरिक्त दो मंदिर है एक स्वेताम्बर जैन मंदिर है ओर दूसरा शांतिनाथ का दिगम्बर जैन मंदिर है ये तीनों मंदिर स्थापत्य कला साधारण है।
दिलवाड़ा के ये मंदिर शिल्प कला कि दृष्ठि से राजस्थान मे ही नहीं बल्कि भारत मे अपने ढंग के उत्क्रष्ठ नमूने है।