शेरशाह सूरी का इतिहास-Sher Shah Suri History In Hindi
Sher Shah Suri History In Hindi शेर शाह सूरी की जीवनी शेरशाह सूरी का बचपन का नाम फरीद था फरीद के जन्म स्थान और जन्म तिथि के सम्बंध मे काफी मत भेद है फरीद का ( शेरशाह सूरी ) जन्म 1486 ई मे नारनौल मे हुआ था।
फरीद इब्राहीम सूरी का पोता था फरीद के पिता का नाम हसन खां था हसन खां के चार पत्नीया ओर आट पुत्र थे फरीद ओर निजाम पहली पत्नी से उत्पन्न हुये थे हसन अपनी चोथी पत्नी को अधिक चाहता था उसने पहली पत्नी के बच्चो की कभी भी परवा नहीं की इसलिए फरीद का प्रारम्भ का जीवन सुख मे नहीं था ओर फरीद को शुरू का जीवन मे काफी दुख झेलने पड़े और अपने पिता से झगड़ा करके जौनपुर भाग गया।
फरीद ने जौनपुर मे करीब तीन वर्ष तक अरबी और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया ओर अपनी प्रतिभा से अपने पिता के मालिक जमाल खां को अधिक प्रभावित किया बस क्या था जमाल खा के कहने पर हसन खां (फरीद के पिता) ने अपनी जागीर का प्रबंध फरीद को सोप दिया फरीद ने अपनी जागीर का प्रबंध कुशलता ओर योग्यता से किया ओर चोर डाकुओ का सफाया किया ओर प्रजा को सुख ओर शांति प्रदान की। फरीद की सफलता को देखकर उसकी सोतेली माँ जलने लगी ओर उसे 1581 जागीर से हटा दिया।
शेर शाह सूरी को शेरखा की उपाधि मिलना
जागीर से हटने के बाद फरीद ने दक्षिण बिहार के शासक बहार खा के यहा नौकरी कर ली ओर अपनी योग्यताओ से उसे प्रसन्न कर दिया एक बार फरीद ने बिना किसी अस्त्र शस्त्र से एक शेर को मार डाला ओर बस क्या था बिहार के शासक ने उसे शेरखां के उपाधि दे दी।
Sher Shah Suri History In Hindi शेर शाह सूरी की जीवनी थोड़े दिनो बाद लोहानी सरदारो ने बहार खा के कान भरने शुरू कर दिये जिसके कारण बहार खां ने शेरखा को अपने पद से हटा दिया इसी स्थिति शेरखां ने करीब 1527 मुगलो के यहा नौकरी कर ली ओर 1528 मे मुगलो की नौकरी छोड़कर वापस बिहार लॉट आया।
शेरशाह सूरी का उत्कर्ष किस प्रकार हुआ
मुगलो की नौकरी छोड़कर शेरखा वापस बिहार के सुल्तान मुहम्मद शाह के दरबार मे आया जहा उसे जलाल खां का शिक्षक और अभिभावक बना दिया मुहम्मद शाह की मृत्यु के बाद उसके उतराधिकारी जलाल खां के नाबालिग होने के कारण सुल्तान की विधवा उसकी सरक्षिका और शेरखा उनका सहायक बना।
अपने शिशु स्वामी के प्रति स्वामी भक्ति रखते हुये शेरखा ने अपनी स्थिति भी मजबूत कर ली उसके बढते प्रभाव को लोहानी सरदार सहन नहीं कर सके और उन्होने बंगाल जाकर नसरतशाह को शेरखा के विरुद्ध भड़काया जिसने 1529 मे बिहार पर आक्रमण किया जिसमे शेरखा ने उसे बुरी तरह पराजित कर दिया तो इस प्रकार शेरखा जलाल खां के जाने के बाद शेरखा दक्षिण बिहार का वास्तविक शासक बन गया।
उस समय जब हुमायूं गुजरात और मालवा मे व्यस्त था तब शेरखा ने बंगाल की ओर अपना कदम बढ़ाया बंगाल का शासक महमूद शाह अयोग्य था उसने दक्षिण बिहार पर आक्रमण करने का दु:साहस किया 1534 मे सूरजगढ़ का युद्ध हुआ इस युद्ध मे शेरखा की विजय हुई और उसे भूमि तोपखाना हथियार सभी मिले। 1535 मे शेरखा ने बंगाल पर आक्रमण किया और महमूद शाह ने करीब 15 लाख सोने के सिक्के देकर उससे संधि कर ली।
चौसा का युद्ध और हुमायूं को पराजित करना
1537 मे हुमायूं शेरखा की शक्ति को दबाने के लिए पूर्व की और बढ़ा करीब 1537-38 मे हुमायूं ने करीब 6 महीने चुनार के किले को जीतने मे लगा दिये और हुमायूं बिना बिहार को जीते हुये बंगाल चला गया और वह पर 7 महीने तक रहा इसी बीच मे शेरखा उसने वापस लोटने का मार्ग को रोक दिया।
1539 मे चौसा का युद्ध हुया जिसमे हुमायूं पराजित होकर भाग गया और 1540 मे कन्नौज या बिलग्राम के युद्ध मे शेरखा ने हुमायूं को वापस पराजित किया।