कालीबंगा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं

By | July 20, 2021
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कालीबंगा सभ्यता के बारे में ( Kalibanga Sabhyata Ke Bare Mein )

कालीबंगा सभयता की जानकारी के लिए यहा कई सोपानों मे खुदाई का काम पुरातत्व भारत सरकार द्वारा किया गया घग्घर नदी ( जिसका प्राचीन नाम सरस्वती था ) के दो टीलों को चुना गया जो आस पास की भूमी से लगभग 12 मीटर की उचाई पर थे और जिनका क्षेत्रफल आधा किलोमीटर था। इनमें गहरी एवं चौड़ाई में खुदाई की गयी जिससे कई पक्षों पर अच्छा प्रकाश पड़ा।

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पुरातन सरस्वती व दृपद्ती नदी के किनारे, जिनका उल्लेख ऋग्वेद में किया गया है, कई जगह खोज़ एवं खुदाई का कार्य 1960 के आसपास कराया गया। इस क्षेत्र के सर्वेक्षण से लगभग 100 छोटे-मोटे खण्ड व कालीबंगा स्थान का एक बड़ा टीला प्रकाश में आया है। यह टीला, जिसमें पूर्व हड़प्पाकालीन बस्ती के भग्नावशेष हैं, बड़े महत्व का है। इस टीले में मुख्य रूप से नगर योजना के तीन खण्ड व उत्खनन से प्राप्त सामग्री मिली है।

कालीबंगा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं

कालीबंगा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं

कालीबंगा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं

नगर निर्माण इन तीनों खण्डों की बस्ती घग्घर के तट पर स्थित कालीबंगा नाम से विख्यात है। इन तीनों खण्डों में एक किले का भाग है और दूसरे दो साधारण बस्ती के । तीनों खण्ड  प्राचीरों से घिरे थे जो कच्ची ईंटों से बने थे। ये मिट्टी की कच्ची ईंटें 40/30 सेमी. लम्बी, 20 सेमी. चौड़ी व 10 सेमी. ऊँची हैं। किले का भाग 240 मीटर उत्तर-दक्षिण और 120 मीटर पूर्व-पश्चिम में विस्तारित था। इसके एक ओर 5-6 चबूतरे थे जिन पर चढ़ने की सीढ़ियाँ थीं और वहाँ पहुँचने के लिए ईंटों की जड़ाई वाला रास्ता था।

सम्भवतः धार्मिक कृत्यों के लिए इसको उपयोग में लाया जाता होगा। इसी तरह ऐसे ही कार्य के लिए वहाँ वेदियों का भी प्रावधान था। इसके एक अन्य भाग में समृद्ध समुदाय के मकान थे जो वैसी ही ईंटों के बने थे जिनसे दुर्ग की प्राचीरों का निर्माण कराया गया था। मकान एक मंजिले होते थे जिनमें तीन-चार कमरे, आंगन तथा नालियाँ बनी हुई थीं। दुर्गवाली बस्ती के दो प्रमुख द्वार थे।

दूसरी बस्ती इस नगर की दूसरी बस्ती नीचे की भूमि की ओर थी जिसकी लम्बाई 240- 360 मीटर थी। यहाँ के मकान व प्राचीर उसी आकार-प्रकार की कच्ची ईंटों से बने थे जिस प्रकार दुर्ग की बस्ती के थे। मकान 5-7 मकानों के समूह में थे जिनको उत्तर-दक्षिण व पूर्व-पश्चिम जाने वाली सड़कों से जोड़ा गया था।

इन सामूहिक मकानों में गलियों, पोल व संकरे रास्ते से होकर प्रत्येक कमरे या कमरों में जाया जाता था। दो-चार परिवारों के लिए भीतर कुएँ भी होते थे। कहीं- कहीं एक कमरा वेदी के लिए भी निर्धारित था। कई मकानों के बीच सहन भी होते थे तथा मकानों के बीच आंगन भी देखे गये हैं। इस बस्ती के भी दो प्रमुख द्वार थे। पानी के निकास के लिए लकड़ी व ईंटों की नालियाँ बनी हुई थीं जो सड़क में बने गड्ढों तक पानी पहुँचाती थीं।

जुते हुए खेत इस क्षेत्र के उत्खनन की सबसे अधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि नगर की प्राचीर के बाहर जोती हुई कृषि भूमि है। घग्घर नदी के बाएँ किनारे पर स्थित खेत 3000 वर्ष ई.पू.के पूर्वार्द्ध का है। उल्लेखनीय बात यह है कि संसार भर में उत्खनन से प्राप्त खेतों में यह पहला है।

यहाँ खेत में दो तरह की फसलों को एक साथ उगाया जाता था, जैसा कि आज भी कालीबंगा के आस-पास के खेतों में होता है। खेत में ग्रिड पैटर्न की गर्तचारियों के निशान हैं और ये दो तरह के निशान एक-दूसरे के समकोण पर बने हुए हैं। वास्तव में कालीबंगा के लोगों ने हड़प्पा संस्कृति के पहले जुते हुए खेत का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। संस्कृत साहित्य में उल्लेखित -‘बहुधान्यदायक क्षेत्र’ संभवत यही था।

यह कहना तो बड़ा कठिन है कि कौन-से अनाजों का यहाँ उत्पादन होता था, परन्तु इतना अवश्य अनुमान लगाया जा सकता है कि नदियों में बाढ़ की सम्भावनाओं के कारण रबी की फसल में गेहूँ व जौ यहाँ होते थे। अनाज इकट्ठा करने की कुछ खाइयाँ भी यहाँ के समृद्ध उत्पादन की पुष्टि करती हैं। ताम्र से बने कृषि के कई औजार भी यहाँ की आर्थिक उन्नति के लक्षण हैं।

दूर का बस्ती खण्ड इन दोनों बस्तियों से 80 मीटर आगे एक बस्ती खण्ड मिला है, जिसमें सुदृढ़ प्राचीर से बना एक कमरा मिला है जिसमें 4-5 अग्निकुण्ड थे। योजना की दृष्टि से ये तीनों नगर खण्ड एक-दूसरे से विलग भी थे और सम्बद्ध भी। इनकी नगर योजना सिन्धु घाटी की नगर योजना के अनुरूप दिखाई देती है।

कला-प्रेम कुछ बर्तनों पर पेड़-पौधों व पक्षियों के चित्र मिले हैं। शृंगार के उपकरणों व प्राप्त आभूषणों से यहाँ के निवासियों का कला-प्रेम व सांस्कृतिक रुचि का बोध होता है। काँसे के दर्पण, हाथीदांत का कंघा, सोने व मूंगे तथा सीपों के आभूषण और ताँबे की पिनें, इनकी उन्नत सभ्यता के प्रतीक हैं। इस युग की विकसित सभ्यता कई मुहरों, जिन पर पशु और पुरुषों की आकृतियाँ बनी हैं या गाय के मुख वाले प्याले तथा तांबे का बैल आदि हैं, से सिद्ध है।

कालीबंगा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं

कालीबंगा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं

 

धार्मिक भावनाएँ कालीबंगा के कालीबंगा के निवासियों की मृतक के प्रति श्रद्धा तथा धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करने वाली यहाँ तीन प्रकार की समाधियाँ मिली हैं। वे अपने शवों को अण्डाकार खण्ड में सीधा उत्तर की ओर सर रख कर मृत्यु सम्बन्धी उपकरणों के साथ गाड़ते थे। दूसरी विधि में शव की टांगें समेट कर गाड़ा जाता था। तीसरी विधि में शव के साथ बर्तन और एक-एक सोने व मणि के दाने की माला से विभूषित कर गाड़ने की प्रथा थी। यहाँ के समाधि देवता सिन्धु सभ्यता के अनुरूप थे।

बर्तन कालीबंगा के उत्खनन से मिट्टी के कई बर्तन और उनके अवशेष मिले हैं। यहाँ के बर्तनों की विशेषता उनका पतला एवं हल्का होना है। उन्हें चाक द्वारा बनाया जाता था फिर भी उनको भौंडे ढंग से बनाया जाना स्पष्ट है। इनका रंग लाल है परन्तु ऊपर और मध्य भाग में काली एवं सफेद रंग की रेखाएँ दिखाई देती हैं।

इन पर अलंकरण चौकोर, गोल, जालीदार, वृत्ताकार, घुमावदार, त्रिकोण एवं समानान्तर रेखाओं से किया जाता था। फूल, पत्ती, चौपड़, पक्षी, खजूर आदि का अलंकरण भी इन पर रहता था। बर्तनों में घड़े, प्याले, लोटे, हांडियाँ, रकाबियाँ, पैंदे वाले ढक्कन व लोटे भी होते थे। मछली, कछुए, बतख, हिरण आदि की आकृतियाँ भी इन पर बनाई जाती थीं।

कालीबंगा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं

कालीबंगा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं

अन्य वस्तुएँ मकानों के अवशेषों व बर्तनों के अतिरिक्त यहाँ अन्य प्रकार की कई वस्तुएँ भी उपलब्ध हुई हैं, जिनमें खिलौने, पशुओं एवं पक्षियों के स्वरूप, मिट्टी की मुहरें, चूड़ियाँ, ताले, तांबे की चूड़ियाँ, चाकू, तांबे के औजार, कांच के मणिये आदि हैं। मिट्टी के भाण्डों पर एवं मुहरों पर अंकित लिपि सैन्धव लिपि के तुल्य है।

कालीबंगा के इस स्थान से ऐसे चिह्न मिले हैं जो किसी प्राचीन नगर से सम्बन्धित हैं। यह शहर चारों ओर मिट्टी की दीवार से घिरा था। मिट्टी की ईंटों से यहाँ के मकान बनाये गये थे। यहाँ के निवासी मिट्टी के सुन्दर बर्तन बनाते थे तथा उनका उपयोग करते थे। यह नगर, मकान, बर्तन आदि कम से कम 4300 वर्ष पुराने हैं। इसके पश्चात् यहाँ सिन्धु सभ्यता के लोग आये और उन्होंने उस पुराने शहर के स्थान पर दूसरा शहर बसाया।

इस शहर की चारदीवारी काफी बड़ी थी और शहर भी काफी सुन्दर था। चौड़ी और पक्की सड़के थीं और कई छोटी-छोटी गलियाँ थीं। मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के विपरीत ये मकान मिट्टी के बनाये जाते थे किन्तु अन्य बातों में यहाँ की सभ्यता मोहनजोदड़ो से मिलती-जुलती है, जैसे घरेलू उपयोग के बर्तन, औजार (पाषाण एवं धातु) आदि ।

सैन्धव लिपिकालीबंगा उत्खनन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह भी है कि इसने सैन्धव लिपि की पहचान करने के प्रयास में एकठोस दिशा निर्देश किया है। यहाँ से प्राप्त एक सैन्धव लिपि के युद्ध मृदपात्र पर लिपि की ओवरलैपिंग ( एक दूसरे पर आए अक्षर ) ने यह सिद्ध कर दिया है कि यह लिपि दाहिने से बायीं ओर को लिखी जाती थी।

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