1. भगत सिंह की कहानी हिंदी में, भगत सिंह की जीवनी पीडीऍफ़ , Bhagat Singh Ke Bare Mein Jankari Hindi Mein
भगत सिंह की कहानी हिंदी में – भगत सिंह का जन्म 27 दिसंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा क्षेत्र में हुआ था। यह क्षेत्र वर्तमान समय में पाकिस्तान में स्थित है। इनके पिता का नाम सरदार किशन और माताजी का नाम विद्यावती कौर था।
यह जाट सिख परिवार से थे, जब इनका जन्म हुआ था तब इनके चाचा अजीत सिंह और स्वान सिंह आजादी के लिए अपना सहयोग दे रहे थे। इनके चाचाओ की वजह से ही भगत सिंह बचपन से ही अंग्रेजों से नफरत करते थे।
2. करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से प्रभावित होना
भगत सिंह के मन पर करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय का काफी प्रभाव पढ़ा था। वे इन दोनों से अत्यधिक प्रभावित थे, इसलिए 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह के बचपन पर काफी प्रभाव पड़ा था इसीलिए लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर ही उन्होंने 1920 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग ले लिया। इस आंदोलन में गांधीजी विदेशी सामानों का बहिष्कार कर रहे थे।
भगत सिंह जब स्कूल में पढ़ रहे थे तब उनकी आयु 14 वर्ष थी और इसी आयु में उन्होंने विदेशी कपड़े जला दिए। इसके बाद से गांव-गांव में उनके पोस्टर छपने लगे और वे प्रसिद्ध होने लगे।
लाहौर षड्यंत्र मामले में भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी थी, व बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया था। भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को शाम को सुखदेव और राजगुरु के साथ फांसी पर लटका दिया गया था। तीनों ही क्रांतिकारियों ने हंसते-हंसते अपना जीवन देश के प्रति न्योछावर कर दिया था।
3. वक्ता, लेखक और पाठक
कम लोग यह जानते हैं कि भगतसिंह एक अच्छे वक्ता, लेखक और पाठक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा था और उनका संपादन भी किया था। उनकी कुछ मुख्य कृतियां जैसे जेल नोटबुक, सरदार भगत सिंह पत्र और दस्तावेज़ भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज आदि।
भगत सिंह जब बचपन में खेल खेला करते थे। तब वह अपने साथियों को दो भागों में बांट दिया करते थे और खेल-खेल में ही वे एक दूसरे के प्रति युद्ध और आक्रमण करके युद्ध का अभ्यास किया करते थे, उनके इन्ही साहसी कार्यों से उनके वीर होने का प्रमाण मिलता था।
भगत सिंह भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में गिने जाते हैं चंद्रशेखर आजाद वह पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर भी भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए ब्रिटिश सरकार को अपने घुटने टेकने पर मजबूर ही कर दिया था। अंत समय तक ब्रिटिश सरकार से मुकाबला करते रहे उन्होंने सबसे पहले लाहौर में सांडर्स की हत्या कर दी थी।
इसके बाद में दिल्ली में केंद्रीय संसद सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध स्वतन्त्रता का बिगुल बाजा दिया था। असेंबली में बम फेंकने के बाद इन्होंने भागने से भी मना कर दिया था। जिसके अनुसार उनके दो अन्य साथियों राजगुरु तथा सुखदेव के साथ इन को पकड़ लिया गया था और फांसी पर लटका दिया गया था।
3. क्रांतिकारी गतिविधि मे सहयोग
जब सरदार भगत सिंह की उम्र 14 वर्ष थी तब 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था. जब भगत सिंह को इस हत्याकांड की सूचना मिली तब वे स्कूल में पढ़ते थे और उस स्कूल से ही पैदल चलकर वे जलियांवाला बाग हत्याकांड स्थान पर पहुंच गए थे। वे अपने चाचाओ की क्रांतिकारी किताबें पढ़कर भी मन में यही सोचते थे कि, यह जो कर रहे हैं ये सही है या गलत।
उन्हीं दिनों गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन छेड़ दिया गया था और वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने लगे। जब गांधीजी के असहयोग आंदोलन को रद्द कर दिया गया था तब भगत सिंह को काफी बुरा लगा था।
इसके बाद में भगत सिंह ने कई जुलूसो में भाग लेना शुरू कर दिया था तथा कई क्रांतिकारी दलो में भी भाग लेना शुरू कर दिया था। उनके प्रमुख क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव और राजगुरु आदि थे।
4. सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट
भगत सिंह हमेशा यह चाहते थे कि किसी भी प्रकार का कोई खून खराबा या हत्या ना हो केवल बातचीत से ही बात बन जाये लेकिन अंग्रेजों को शायद यह पसंद नहीं था।
जब असेंबली पर बम फेंकने की बात आई तब सर्वसम्मति से भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का नाम चुना गया। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ही निर्धारित समय पर केंद्रीय असेंबली में इन दोनों ने एक ऐसे स्थान पर बम फेंका जहां पर कोई आम आदमी या कोई अन्य इंसान मौजूद ना हो।
जब बम फटा और विस्फोट हुआ तो चारों तरफ धुआं ही धुआं हो गया। भगत सिंह भागना नहीं चाहते थे उन्होंने पहले ही सोच लिया था कि जब बम विस्फोट होगा तो भागेंगे नहीं। इसके लिए उन्हें चाहे फांसी ही क्यों ना हो जाए। उन्होंने भागने का मन नहीं बनाया बम फटने के बाद इंकलाब जिंदाबाद, इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाने लगे और उसके बाद में ही वहां पर अंग्रेज पुलिस अधिकारी आ गए और बटुकेश्वर और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया।
5. लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला
जब भारत में साइमन कमीशन का बहिष्कार किया जा रहा था तब लाला लाजपत राय ने भी इसमें बखूबी साथ दिया और जब वह साइमन कमीशन वापस जाओ के नारे लगा रहे थे तब अंग्रेज शासन ने वहां पर जोरदार लाठीचार्ज कर दिया और अंग्रेजों की लाठियां लाला लाजपत राय के सिर और सीने पर चलने लगी। इससे उनकी मृत्यु हो गई।
अतः भगत सिंह ने एक योजना बनाई जिससे वे पुलिस के एक अधिकारी को मारना चाहते थे क्योंकि उन्हीं के वजह से क्रांतिकारी लाला लाजपत राय की मृत्यु हुई थी।
अपनी योजना के अनुसार उन्होने राजगुरु के साथ में इस घटना को अंजाम दिया। उन्होंने अपने एक साथी जय गोपाल को भी इस योजना में शामिल किया। जब सांडर्स उनके सामने से गुजर रहे थे तब राजगुरु ने एक गोली उनके सिर में मार दी।
इसके तुरंत बाद ही भगत सिंह ने सांडर्स पर तीन चार गोली दाग दी जिससे मौके पर ही सांडर्स की मृत्यु हो गई थी। अतः जब सांडर्स की हत्या करने के बाद में यह दोनों भाग रहे थे तो एक सिपाही ने इनका पीछा करना शुरू कर दिया था। भगत सिंह ने उस सिपाही को भी गोली मार दी और इस प्रकार से उन्होंने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया।
भगत सिंह की कहानी हिंदी मे
मैं नास्तिक क्यों हूँ भगत सिंह pdf download – ‘’मैं नास्तिक क्यों हूं’’ जब भगत सिंह जेल में कैद थे तब उन्होंने जेल में ही इस आलेख को लिखा था। जो लाहौर से प्रकाशित समाचार पत्र द पीपल में 27 दिसंबर 1931 के अंत में प्रकाशित किया गया था। भगत सिंह ने इस आलेख में ईश्वर के प्रति अनेक बातें लिखी थी और अनेक ही तर्क किए थे। इस आलेख में उन्होंने सामाजिक परिस्थितियों के बारे में भी लिखा था।
6. भगत सिंह द्वारा लिखी गई किताबें
भगतसिंह को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था उनके किताबों के प्रति बहुत अत्यधिक रुचि थी। वह बचपन में अपने चाचा द्वारा लिखी क्रांतिकारी किताबों को भी बहुत पढ़ा करते थे। इसी वजह से जब वे जेल मे थे। तब उन्होंने जेल मे कई किताबें पढ़ी।
जब उन्हें फांसी दी जा रही थी तो उस समय वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। जब जेल में पुलिस वालों ने बताया कि अब उनको फांसी देने जा रहे हैं या फांसी का समय हो चुका है। तब भगत सिंह उनको बोलते हैं रुकिए पहले एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल ले। अगले 1 मिनट तक किताब पढ़ी फिर उन्होंने किताब को पढ़ना बंद कर दिया और उसे छत की तरफ उछाल दिया और बोले अब चलो अब सब कुछ ठीक है।
7. फांसी की सजा को गुप्त रखना
शहीद भगत सिंह को जब फांसी दी जा रही थी तो ब्रिटिश सरकार ने इस सजा को पूरी तरह से गुप्त रखा। उस दौरान कम ही लोग वहां पर शामिल थे, यूरोप के डिप्टी कमिश्नर भी इस प्रक्रिया में शामिल थे।
जितेंद्र सान्याल द्वारा लिखी पुस्तक में जब भगत सिंह फांसी के तख्ते पर चल रहे थे और गले में फंदा डालने वाले ही थे तब एन वक्त पहले ही भगत सिंह ने डिप्टी कमिश्नर की ओर देखा और हंसने लगे और कहा कि आप बहुत भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के क्रांतिकारी किस तरह अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए और अपने देश की सेवा को पूरा करने के लिए खुशी-खुशी फांसी पर लटक जाते हैं।
तीनों को फांसी देने का का जो दिन तय किया गया था वह 23 मार्च 1931 था। तीनों क्रांतिकारियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई थी और सतलुज नदी के किनारे गुपचुप तरीके से इन तीनों क्रांतिकारियों के शवों को ले जाया गया था।