Chandra Shekhar Azad History In Hindi Pdf

By | July 11, 2022
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चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय हिंदी में

Chandra Shekhar Azad History In Hindi Pdf

Chandra Shekhar Azad History In Hindi Pdf – चन्द्रशेखर आजाद एक महान क्रांतिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद उग्र स्वभाव के थे। वे बचपन से क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रीय थे। चंद्रशेखर आजाद ने कसम खाई थी कि मरते दम तक वह अंग्रेजो के हाथ नहीं आयेंगे। जब आखिरी समय में अंग्रेजों ने चन्द्र शेखर को घेर लिया था तो स्वयं ही खुद को गोली मार दी और शहीद हो गए।

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चन्द्रशेखर आजाद का प्रारंभिक जीवन के बारे मे

Chandra Shekhar Azad History In Hindi Pdf

चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के भाबरा गांव में हुआ था। उनके सम्मान में अब इस गांव का नाम बदलकर चंदशेखर आजाद नगर कर दिया गया है। मूल रूप से उनका परिवार उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव से था, लेकिन पिता सीताराम तिवारी को अकाल के कारण अपने पैतृक गांव को छोड़कर मध्यप्रदेश के भाबरा मे आना पड़ा।

यहा भील जनजाति का बहुल इलाका है और इसी वजह से बालक चंद्रशेखर को भील बालकों के साथ धनुर्विद्या और निशानेबाजी करने का खूब मौका मिला और निशानेबाजी उनका शौक बन गया।

चंद्रशेखर बचपन से ही विद्रोही स्वभाव का था। पढ़ाई से ज्यादा उनका मन खेल गतिविधियों में लगता था। इसके बाद वह घटना घटी जिसने पूरे हिंदुस्तान को हिला कर रख दिया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड ने बालक चंद्रशेखर को झकझोर कर रख दिया और उन्होंने ईंट का जवाब पत्थर से देने की ठान ली।

चंद्रशेखर आजाद की पत्नी का क्या नाम था?

चंद्रशेखर आजाद ने कभी भी शादी नहीं की है आज़ाद का पूरा जीवन क्रांतिकारी मे ही व्येतीत हुआ है

आज़ाद नाम कैसे पड़ा

वर्ष 1921 में महात्मा गाँधी ने जब असहयोग आन्दोलन की घोषणा की थी तब चन्द्रशेखर की उम्र मात्र 15 वर्ष थी और वे उस आन्दोलन में शामिल हो गए थे।

इस आन्दोलन में चन्द्रशेखर पहली बार गिरफ्तार हुए थे। इसके बाद चन्द्रशेखर को थाने ले जाकर हवालात में बंद कर दिया।

दिसम्बर में कड़ाके की ठण्ड में आज़ाद को ओढ़ने–बिछाने के लिए कोई बिस्तर नहीं दिया गया था। जब आधी रात को इंसपेक्टर चन्द्रशेखर को कोठरी में देखने गया तो आश्चर्यचकित रह गया। बालक चन्द्रशेखर दंड-बैठक लगा रहे थे और उस कड़कड़ाती ठंड में भी पसीने से नहा रहे थे।

अगले दिन आज़ाद को न्यायालय में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। जब मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर से पूछा “तुम्हारा नाम”। चन्द्रशेखर ने जवाब दिया “आज़ाद”। फिर मजिस्ट्रेट ने कठोर स्वर में पूछा “पिता का नाम”। फिर चंद्रशेखर ने जवाब दिया “स्वतंत्र” और पता पूछने पर चंद्रशेखर ने जवाब दिया “जेल”।

चंद्रशेखर के इन जवाबों को सुनकर जज बहुत गुस्सा आ गया और उसने बालक चंद्रशेखर को 15 कोढ़े की सजा सुनाई। चंद्रशेखर की वीरता की कहानी बनारस के घर–घर में पहुँच गयी थी और इसी दिन से उन्हें चंद्रशेखर आज़ाद कहा जाने लगा। इस प्रकार चन्द्र शेखर का नाम आज़ाद पड़ा।

क्रांति का शुरूआत

जलियांवाला बाग कांड के बाद चंद्रशेखर को समझ में आया कि आजादी बात से नहीं बंदूक से मिलेगी। हालांकि उन दिनों महात्मा गांधी और कांग्रेस का अहिंसात्मक आंदोलन अपने चरम पर था और पूरे देश में उन्हेंक भारी समर्थन मिल रहा था। ऐसे में हिंसात्म‍क गतिवि‍धियों के पैरोकार कम ही थे।

चंद्रशेखर आजाद ने भी महात्माम गांधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और सजा पाई लेकिन चौरा-चौरी कांड के बाद जब आंदोलन वापस लिया गया तो आजाद का कांग्रेस से मोहभंग हो गया, चंद्रशेखर आजाद ने बनारस का रुख किया।

बनारस उन दिनों भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों का केन्द्र हुआ करता था। बनारस में वह देश के महान क्रांतिकारी मन्मकथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आए।

इन नेताओं से वे इतने प्रभावित हुए कि वे क्रांतिकारी दल हिन्दुंस्ता्न प्रजातंत्र संघ के सदस्‍य बन गए। इस दल ने शुरू में गांवों के उन घरों को लूटने की कोशिश की जो गरीब जनता का खून चूस कर पैसा जोड़ते थे लेकिन दल को जल्दी ही समझ में आ गया कि अपने लोगों को तकलीफ पहुंचा कर वे जनमानस को कभी अपने पक्ष में नहीं कर सकते थे।

दल ने अपनी गतिविधियों को बदला और अब उनका उद्देश्यन केवल सरकारी प्रतिष्ठामनों को नुकसान पहुंचा कर अपनी क्रांति के लक्ष्यों को प्राप्त  करना बन गया। दल ने पूरे देश को अपने उदृश्यों को परिचित करवाने के लिए अपना मशहूर पैम्फतलेट द रिवाल्यूरशरी प्रकाशित किया। इसके बाद उस घटना को अंजाम दिया गया, जो भारतीय क्रांति के इतिहास के अमर पन्नों में सुनहरे शब्दो में दर्ज है।

सांडर्स की हत्या और असेम्बली में बम

दल ने सक्रिय होते ही कुछ ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया कि अंग्रेज सरकार एक बार फिर उनके पीछे पड़ गई। लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने सांडर्स की हत्या का निश्चिय किया और चंद्रशेखर आजाद ने उनका साथ दिया।

इसके बाद आयरिश क्रांति से प्रभावित भगतसिंह ने असेम्बीली में बम फोड़ने का निश्चय किया और आजाद ने फिर उनका साथ दिया। इन घटनाओं के बाद अंग्रेज सरकार ने इन क्रांतिकारियों को पकड़ने में पूरी ताकत लगा दी और दल एक बार फिर बिखर गया।

आजाद ने भगतसिंह को छुड़ाने की कोशिश भी की लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। जब दल के लगभग सभी लोग गिरफ्तार हो चुके थे, तब भी आजाद लगातार ब्रिटिश सरकार को चकमा देने मे कामयाब रहे थे।

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु कैसे हुई

वर्ष 1870 में सक्स-कोबर्ग के राजकुमार अल्फ्रेड एवं गोथा प्रयागराज (तब, इलाहाबाद) के दौरे पर आए थे। इस दौरे के स्मरण चिन्ह के रूप में 133 एकड़ भूमि पर इस पार्क का निर्माण किया गया जो शहर के अंग्रेजी क्वार्टर, सिविल लाइन्स के केंद्र में स्थित है। वर्ष 1931 में इसी पार्क में क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चन्द्र शेखर आज़ाद को अंग्रेज़ों द्वारा एक भयंकर गोलीबारी में वीरगति प्राप्त हुई। आज़ाद की मृत्यु 27 फ़रवरी 1931 में 24 साल की उम्र में हो गई।

 

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चंद्रशेखर आजाद के नारे

  • “दुश्मनों की गोलियों का सामना हम करेंगें, आजाद है, आजाद ही रहेंगें।
  • इंकलाब जिंदाबाद
  • बम और पिस्तौल क्रांति नहीं लाते,
    क्रान्ति की तलवार विचारों के धार बढ़ाने वाले पत्थर पर रगड़ी जाती है।
  • प्रेमी, पागल, और कवी एक ही चीज से बने होते हैं।
  • “यह मत देखों कि दूसरे तुम से बेहतर कर रहे है, प्रतिदिन अपने ही रिकार्ड को तोड़ो क्योंकि सफलता सिर्फ तुम और तुम्हारे बीच का संघर्ष है।”
  • “हर रात जब हम सोने के लिये बिस्तर पर जाते है, हम नहीं जानते कि हम कल सुबह उठेगें भी या नही फिर भी हम आने वाले कल की तैयारी करते है – इसे ही आशा कहते है”।

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